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समय चलती दुधारी जा रही है / रंजना वर्मा

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समय चलती दुधारी जा रही है
सभी की उम्र मारी जा रही है

समन्दर हो रहा बेचैन है फिर
नदी कोई कुँआरी जा रही है

खिले हैं फूल फिर से इस चमन में
भरी सारी खुमारी जा रही है

तितलियाँ देखती टहनी पर चढ़कर
खिज़ा की अब सवारी जा रही है

नहीं सोचा सुयोधन ने कभी था
वो क्या शय है जो हारी जा रही है

कन्हैया आज सुन लो टेर मेरी
सखी अब तो उघारी जा रही है

वतन को लग गयी जो द्वेष बन के
नज़र वह अब उतारी जा रही है