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चांद हमारी ओर बढ़ता रहे / सुन्दरचन्द ठाकुर
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चांद हमारी ओर बढ़ता रहे
अंधेरा भर ले आग़ोश में
तुम्हारी आंखों में तारों की टिमटिमाहट के सिवाय
सारी दुनिया फ़रेब है
नींद में बने रहें पेड़ों में दुबके पक्षी
मैं किसी की ज़िन्दगी में ख़लल नहीं डालना चाहता
यह पहाड़ों की रात है
रात जो मुझसे कोई सवाल नहीं करती
इसे बेख़ुदी की रात बनने दो
सुबह
एक और नाकाम दिन लेकर आयेगी.