भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बारहा लाजवाब आता है / अनिरुद्ध सिन्हा
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:03, 13 मार्च 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनिरुद्ध सिन्हा |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
बारहा लाजवाब आता है
ज़ख्म देकर जो ख़्वाब आता है
जब मुहब्बत से लोग मिलते हैं
तब वहाँ इन्क़लाब आता है
फिर भी रौशन जहां नहीं होता
रोज़ ही आफताब आता है
अब कहाँ प्यार के लिफाफ़े में
कोई लेकर गुलाब आता है
शायरी में मज़ा तभी आता
शेर जब क़ामयाब आता है