भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अपणा बरमुन्डम यूंतैं मकोट चयेन्दन / धर्मेन्द्र नेगी

Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:57, 23 मार्च 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=धर्मेन्द्र नेगी }} {{KKCatGadhwaliRachna}} <poem> अपण...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अपणा बरमुन्डम यूंतैं मकोट चयेन्दन
यूंतैं हम न सिर्फ हमारि वोट चयेन्दन

निझरक ह्वेकि वु टरकाण चन्दन सांकु
यूं बाघों तैं बिन गुठाल़ै गोट चयेन्दन

अणसल़ौ लोखर भुकि थ्वड़ि चान्द
वे तैंत चटटां घैणा की चोट चयेन्दन

चुनों तकै रौन्द यूंको हफराट-फफराट
वेका बाद त लुकणौं यूंतैं ओट चयेन्दन

अपणा ऐब कख दिखेन्दन कैतैं कभि
हैंका परै हि यूं भग्वानो तैं खोट चयेन्दन

अपणि त उतारीs यूंन धारम धैर्याली
अब यूंतैं उतरीं हमारि लंगोट चयेन्दन

क्वी म्वर्या-बच्यां यांसे यूंतैं क्य लेण-देण
यूंतैं त 'धरम' खल़्टा भोरी नोट चयेन्दन।