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मुर्गा बूढ़ा निकला / अशोक पांडे

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दो सौ रुपये की शराब का
मजा बिगड़ कर रह गया
मुर्गा बूढ़ा निकला

ढ़ेर सारे
प्याज लहसुन और मसालों में भूनकर
प्रेशर कुकर पर चढ़ा दिया मुर्गा
दस बारह सीटियां दीं
मुर्गा गला नहीं
मुर्गा बूढ़ा निकला

थोड़ा-थोड़ा नशा भी चढ़ने लगा था
सब काफूर हो गया
दांतों की ताकत जवाब दे गई
मुर्गा चबाया नहीं गया
सोचता हूं
मुर्गे अगर बोल पाते तो क्या करते
मशविरा कर कोई रास्ता ढ़ूढते
सारी जालियां तोड़कर
सड़क पर आ जाते मुर्गे

वाह प्रकृति !
तू कितनी भली है
बड़ा अच्छा किया बेजुबान बनाया मुर्गा
जाली के पीछे बनाया मुर्गा

फिर भी
सोचता हूं
अगर जाली में बंद मुर्गा
बोल पाता तो कितना अच्छा होता

कल शाम
मुर्गा खरीदने से पहले
मुर्गे से ही पूछ लेते उसकी उम्र
-हमारी शाम तो खराब नहीं होती
दो सौ रुपये की शराब का
मजा तो न बिगड़ता