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नारी / करणीदान बारहठ

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हूं नारी हंू जगरी अमर जोत,
घर हो दामण सो दिवलो हूं।
अमरी स्यूं उतरी आभा हूं,
हूं रूप धरा रो उजळो हूं।

पावस री श्याम कलायण हूं,
मधु री सौरभ सुखकर हूं।
हूं पूनम रो चांद सलोनो हूं,
हूं सांझ सुहाणी सुंदर हूं

संगीत सुध री सरगम हूं,
कविता रो आखो जीवण हूं।
हूं कंवली सी कमनीय कला,
विधि रो मधुर संजीवन हंू।

हूं पणिहारी री हूं छम छनन,
जौवन री आंख्या मटकाती।
अरूणिम अधरां रो अमरत हूं,
हूंू केल कटि री थिरकांती।

हूं लाज ओट में लजवंती,
पलकां में मीठो प्यार लियां।
अलकां में सामट सौरभड़ी;
नैणा में खरो ख्ंिाचाव लियां।

मुलकाऊं मीठी बातड़ल्यां,
अलसाऊं हलकै झोंकै स्यूं।
मुस्काऊं जाणैं चांद खिलै,
दो देऊं हलकै रोलै स्यूं।

पति री सुन्दर पत्नी हूं,
ममता री पुतली मावड़ली।
हूं बहन लाडली भाई री,
मां री लाडिसर डावड़ली।

जुग बदल्यो हूं नहीं बदली,
जुग जुग स्यूं एक रूप रह्यो।
जुग रो रूप कुरूप बण्यो,
पण म्हारो रूप सरूप रह्यो।

मिनखां रो भाव बण्यो बिगड़्यो,
पण म्हारो भाव अटूट रह्यो।
हूं सत नै राख्यो सामट‘र,
म्हारो भविष अभूत रह्यो।

भारत री साची शाकुंतल,
नर री बातरो विष्वास कर्यो।
बो राज करै मद में भूल्यो,
बोल्यो ‘मैं न कठी ब्याव कर्यो’

दर दर भटकी जंगल जंगल,
गोदी में बींरो जायोड़ो
पाल्यो पोस्यो बणग्यो बब्बर,
आयो बोल्यो ‘हूं ब्यायोड़ो।’

मैं गौतम री अहिल्या हूं,
जग कहदे, हूं कद बदली।
म्हारै मन में म्हारो परण्यो,
धोखो करग्यो हो भेष छली।

हूं पूरै युग पत्थर बणली,
हूं राखी काया बण माटी।
आखर भगवान उबार्यो आ,
यूं जीवण री जोखम काटी।

हूं रामचन्द्र री सीता हूं,
बो ही मरजादा पुरूषोŸाम।
महलां रो छोड्यो राजपाट,
पति रो साथ घणो उत्तम।

रावण बोल्यो पण पटराणी,
हूं लंका धूल बण दीनो।
मूरख रै कहणौ स्यूं मन्नै,
जंगल रै बीच भिजा दीणी।

किरणा हूं पीथल री राणी,
अकबर री छाती जा चढ्ढी।
ले घास मुंह बण रूप चोर,
बर सात नाकड़ी रगड़ाली।

धरती रो धर्म धरोहर हूं,
धारी धरती नै हर जुग में।
हूं सत राख्यो सतजुग में,
द्वापर, त्रेता अर कलजुग में।

जद आंख उठी म्हारै सत पर,
बापरग्यो हिय में महापाप।
लपक्यो म्हां पर जद लंगवाड़ो,
हूं हुई पलां में सरब राख।

पति नै मान्यो हूं परमेष्वर,
सबरस सौंप्यो हूं एक हाथ।
बो चाल पड़यो हूं चाल पड़ी,
म्हारै मालिक रै साथ साथ।

कंवलो हूं कंवलां कमलां स्यूं,
छाती राखूं हूं बज्र बणी।
पलकां में पाणी राखूं हूं
तो पाणी हित जाणू मरणो भी।

हूं मिनख मानखो देख लियो,
म्हां पर ओजूं विष्वास नहीं।
चांदी सोनै री बेड्यां स्यूं,
जकड़ी है जाणै फांस जड़ी।

आंख्यां स्यूं रोज डरावै है,
घर में राखण रो रोब करै।
काया री बांध गांठड़ी सी,
घुरकणी बाड़‘र कोड करै।

जद तक सौरभ है फूलां में,
पलकां में राखै मांड्योड़ो।
जद रूप बदल अ‘र कुरूप हुवै,
फेंकै ज्यूं हांडी बोदोड़ी।

अपणी अै प्यास बुझावण नै,
म्हानै हाटां पर चढ़वाई।
अपणा अै भाव सुवारण नै;
खुल्ली नंगी नै नचवाई।

मूंडै माथै रा रूप चोर,
बाजार लगाया मीनां रा।
म्हारी इज्जत री खुली लूट,
जद सांसा पड़ग्या हा जीणै रा।

हूं पाप मूल हूं धर्म धरा,
हूं ही कलजुग हूं ही सतजुग।
हूं मान अ‘र अपमान स्वयं,
हूं अमरलोक हूं ही मरघट।

जीं जुग में नारी री पूजा,
बो जुग सतजुग कहलायो।
जीं घर में नारी मानीजी,
वो घर सोनै स्यूं बणवायो।

हूं नारी नग री अमरजोत,
घर रो दामण सो दिवलो हूं।
अमरी स्यूं उत्तरी आभा हूं,
हूं धरा रो उजळो हूं।