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सबका दिल से रिश्ता यार / रंजना वर्मा
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सबका दिल से रिश्ता यार
लेकिन सब खुद से बेज़ार
सब को है यह सच मालूम
इच्छाएँ हैं दुख का सार
दुखदायी है धन का मोह
है फिर भी सब को दरकार
हरि की कृपादृष्टि की कोर
धरती पर कहलाती प्यार
रहता मन में नित्य प्रपञ्च
करते झूठा ही व्यवहार
देते जो औरों को कष्ट
पर हिंसा उनका त्यौहार
जब जब होता विचलित धर्म
लेते हैं श्री हरि अवतार