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न ये पूछ मुझसे कि क्या चाहती हूँ / रंजना वर्मा

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न ये पूछ मुझसे कि क्या चाहती हूँ
वफाओं का अपनी सिला चाहती हूँ

किया जो भी वादा निभाना हमेशा
वफ़ा ही किया है वफ़ा चाहती हूँ

कोई ग़म न हो जिंदगी में तुम्हारी
तुम्हें खुश सदा देखना चाहती हूँ

नहीं चाहिये इस ज़माने की दौलत
तेरे इश्क़ की इन्तेहा चाहती हूँ

खुशी सिर्फ अपनी नहीं चाहती मैं
सभी खुश रहें ये दुआ चाहती हूँ

बहाते हैं जो खून इंसानियत का
मिले सख़्त उनको सजा चाहती हूँ

भरी नेमतों से रहे सरजमीं ये
मसर्रत का वो सिलसिला चाहती हूँ