भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जून-सी गर्मी आयी है / गरिमा सक्सेना
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:33, 30 मार्च 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गरिमा सक्सेना |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
हुआ मई आरम्भ
जून-सी गर्मी आयी है
कड़क हो गयी धूप
उमस है घर के अंदर
सबके सब बेहाल
पेड़-पौधे, पशु, नभचर
बीत गया मधुमास
लगी जलने तरुणाई है
सूखे भू के होंठ
फटी पोखर की छाती
सूख गये नलकूप
अभी से लू धमकाती
होगा कैसा हाल
कि बाकी जून-जुलाई है
प्यासा मन बेचैन
स्वेद से तन है गीला
बढ़ा धरा का ताप
प्रदूषण ने की लीला
क्षरित हुई ओजोन
बनी भू गरम कड़ाही है