भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

किसान गीत / अवधेश्वर अरुण

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:00, 30 मार्च 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अवधेश्वर अरुण |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हम बिस्वास चाहइले,
तू ग्यान देइत हत∙
हम तोहरा के समझे ला चाहइले
अपनइती के परिधि में
तू दुरूह बने ला चाहइत हत∙
तर्क के जाल से
हम कर्म चाहइले
तू काम रोको प्रस्ताव बन के
बहला देइत हत∙
हम बिस्वास के बदल बन के
बरसे ला चाहइले,
तू उरा देबे ला चाहइत हत∙
आश्वासन के आन्ही बन के
हमरा समझ में न अबइअ
तोहर विस्वास विरोधी रीति
तोहरा पता न हओ –
आस्था चालाकी से लमहर चीज होइअ,
बिस्वास हिमालय से जादा ऊँचा होइअ,
आ समझदारी आदमी के
नकारे के छद्म न हए
बल्कि स्वीकारे की पुन्य पर्व हए