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मुकरियाँ / नवल किशोर प्र. श्रीवास्तव

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बोले झूठ बजावे गाल,
नित हराम के मारे माल,
खाए मछरी मांस कबाब,
पीए दारु, चुरुट, शराब,
ऊपर से लागे उ उज्जर,
भीतर से करिआ आ कंजर,
जनता के लेबे पाटिआए,
जीत चुनाओ बेखटके जाए,
काट-काट जनता के घेंट,
अप्पन खूब भरे ऊ पेट,
रखे साथ में बहुत चहेता,
की सखि कुत्ता, न सखी नेता।।

बिना घूस के करे न काम,
खूब देखाबे टिमक टाम,
जनता के उ करे हरान,
रुपिआ लेबे झट से टान,
चाँपे खूब आ पान,
उ त∙ हए भारी बइमान,
उ त∙ करे रोज उछ्वाद,
आफिस के कएलक बरबाद,
ओकर हए भारी घनचक्कर,
की सखी गधा, न सखी अफसर ।।

ओकर कपड़ा-लत्ता खाकी,
करआईटी हए उ खूब चलाकी,
छन-छन उ बदले निज बात,
रोज कराबे उ उत्पात,
उ त∙ हए भारी फंटूस,
दुन्नु ओर से लेबे घूस,
बेक़सूर के करे हरान,
अपराधी के बख्से जान,
रखे खूब उ लमहर मोछ,
लेकिन हए भारी घोंच,
उ हए साँचो जुलमी खालिस,
की सखी चोट्टा, न सखी पुलिस ।।

ठगे मुअक्किल के उ रोज,
नया-नया उ मारे पोज,
उ कहिओ बोले न सांच,
करे हमेशा छौ आ पांच,
गढ़े रोज दिन झूठा केस,
जैम अइसन हए ओकर भेस,
एकरा सन कोई इ बहाया,
ई चिन्हे न∙ अपन-पराया
उ नित करिआ कोट चढ़ाबे,
उज्जर धप्द्हत टाई लगाबे,
उ हए बरा गीध आ चील,
कि सखी पाजी, न सखी वकील