भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्रजातंत्र के पहिल किरन / ब्रजनंदन वर्मा
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:45, 30 मार्च 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ब्रजनंदन वर्मा |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
प्रजातंत्र के पहिल किरन,
वैशाली भरल उजास में।
आँख खोल के देख∙ भाई,
अपना के इतिहास में।।
परम सुन्दरी, सब गुन आगर,
इहमें के नारी अम्बपाली।
महावीर-गौतम के धरती,
गढ़ हुनके हम्मर वैशाली।।
इहमें आठों कुल के झंडा,
फहराएल आकास में।
प्रजातंत्र के पहिल किरन,
वैशाली भरल उजास में।।
धन वैभव से भरल रहल,
ई धरती के हर कोना।।
रूप, रंग, रस, गंध सोहावन,
जइसे हो जादू टोना।।
सुखद शान्ति सदभाओ प्रेम,
के शक्ति भरल रह सांस में।
प्रजातंत्र के पहिल किरन,
वैशाली भरल उजास में।।