भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सूर्यास्त के आसमान / आलोक धन्वा

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:40, 3 जुलाई 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार = आलोक धन्वा }} उतने सूर्यास्त के उतने आसमान उनके उतने ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उतने सूर्यास्त के उतने आसमान

उनके उतने रंग

लम्बी सडकों पर शाम

धीरे बहुत धीरे छा रही शाम

होटलों के आसपास

खिली हुई रौशनी

लोगों की भीड़

दूर तक दिखाई देते उनके चेहरे

उनके कंधे जानी -पह्चानी आवाजें


कभी लिखेंगें कवि इसी देश में

इन्हें भी घटनाओं की तरह!