पन्द्रह अगस्त / राम सिंहासन सिंह
फर-फर-फर उड़ रहल तिरंगा जन-गन-मन हे मस्त।
इहे पन्द्रह अगस्त इहे पन्द्रह अगस्त।।
स्वतंत्रता के पाठ रटावे में हरदम अभ्यस्त।
इहे पन्द्रह अगस्त इहे पन्द्रह अगस्त।।
लहर-लहर लहरा रहलो ई लाला किला प्राचीर से।
घर-घर बाँटे अमर संदेसा बोले एक-एक वीर से।।
दुस्मन के छाती पर मुँगिया दल के कर दे त्रस्त।
इहे पन्द्रह अगस्त इहे पन्द्रह अगस्त।।
अमरित घट छलकावे वाला भारत के त्योहार हे।
हिन्द, मुस्लिम, सिख, ईसाई के सुन्दर ई हार हे।।
ये जेकरा तोड़ेला चाहे ओकरा कर दे ध्वस्त।
इहे पन्द्रह अगस्त इहे पन्द्रह अगस्त।।
लयकन, बुतरू, मरद, मेहारू हुलस-हुलस के झूमे।
झंडा ई आजाद वतन के नील गगन के चूमे।।
हमर देस के अमर निसानी धु्रव-सुदर्सन हस्त।
इहे पन्द्रह अगस्त इहे पन्द्रह अगस्त।।
स्वर्न जोत छिटका गेलन हे गाँधी आऊ जवाहर।
तिलक, भगत, सुभाष, मौलाना नेता गुन के आगर।।
देस प्रेम के मंतर हल जिनका एकदम कंठहस्त।
इहे पन्द्रह अगस्त इहे पन्द्रह अगस्त।।
स्वर्ग से बढ़के ई धरती, धरती से बढ़कर झंडा।
भारत के वासी फहरावे ला लगावे प्रान के डंडा।।
टूट जाये पर झुक न कभियो सान येकर अलमस्त।
इहे पन्द्रह अगस्त इहे पन्द्रह अगस्त।।
सरसती के सेत वस्त्र में जे कोय कारिख पोते।
हिन्द महासागर में जाके ओकरा सब मिल गोते।।
करिया धन आऊ करिया मन के कर दे हे ई पस्त।
इहे पन्द्रह अगस्त इहे पन्द्रह अगस्त।।