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जहाँ प्रेम राम बरसऽ हे / राम सिंहासन सिंह

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वन-उपवन के गलीन-गुचीन में, प्रीत के बसुरी जहाँ बजऽ हे।
चल कवि छोड़ आज तू होड,़ जहाँ प्रेम राग बरसऽ हे।।

जहाँ न कोई राग-द्वेस हे, ना कोई मनमानी,
जात-पात के दूर भगा के, जहाँ बसे बलिदानी।
मनमानी आऊ करम ई देख के हो गेली हैरानी।
सांति-धरम आऊ ममता के ही नदियन जहाँ बहऽ हे।
चल कवि छोड़ आज तू होड,़ जहाँ प्रेम राग बरसऽ हे।।

जहाँ किसानन के मेहनत में लेहू धार बहल हे
मेहनत आऊ मजदूरी से जेकर जीवन सिहरल हे
दू रोटी के खातिर जेकर मनवां हहरल हे
भूख पियास मिटावेला जेकर जनवां छछनल हे
करुना-दया-प्रेम के झोका हरदम जहाँ वह हे।
चल कवि छोड़ आज तू होड,़ जहाँ प्रेम राग बरसऽ हे।।

होली-दिवाली में जेकर सुथर भाव जगल हे,
भाई-भाई से गले लगाके सुन्दर राग भरल हे।
कहीं न कोई बैरभाव हे महफिल सदा जगल हे,
हर नारी ममता के देवी भाई देव बनल हे
घर-घर में आऊ गली-गली में प्रेम के दीपक जहाँ जल हे
चल कवि छोड़ आज तू होड,़ जहाँ प्रेम राग बरसऽ हे।।

टीम-टीम ढीबरी के परकास में पढ़े जहाँ बुतरून सब बाल
परदेसी के प्रिया बैठ गाती यह विरह सनेसा ज्वाल
भैया! लिख द एक कलम खत मोर बालम के ये हाल
चारों कोने खेम कुसल, विरह-वियोग से हाल-बेहाल
समझ सनेसा के आवन कागा चढ़ल मुंडेर उचरऽ हे।
चल कवि छोड़ आज तू होड,़ जहाँ प्रेम राग बरसऽ हे।।

पनघट से आ रहल पीत बसना जुवती सोहऽ हे,
कवनों भाँति ढोवईत ऊ गागर जौवन के भार सहऽ हे,
जेकर सुन्दरता में खाली भाव-विभोर छीपल हे,
नहीं कहीं बनावटी पन हे नेह के डोर बंधल हे
जेकर अंखियाँ में निसिदिन आभा के जोत जरऽ हे।
चल कवि छोड़ आज तू होड,़ जहाँ प्रेम राग बरसऽ हे।।

भेल-भोर अब गा रहलन हे परतकाली बुढ़वन सब
माल मवेसी ले-लेकर के चल-पड़लन बुतरून सब
घर-घर से उठ रहल धुआँ अब साझ के आयल बारी
चौपालों में बैठ किसानन गा रहलन हे बनवारी
राम-किसन के ई धरती पर जहाँ भगती भाव बिहंसऽ हे।
चल कवि छोड़ आज तू होड,़ जहाँ प्रेम राग बरसऽ हे।।