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आपौ / मीठेश निर्मोही
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थारै मिंदरियै पूरीजतौ संख म्हारै घर-आंगणियै बाजतौ कांसी-थाळ।
थारै अर म्हारै आपै रा ऐहलांण।
आपां सूं ई तौ है औ नाद गूंजतौ आखै आभै क्यूं म्हारा देव? </poem>