सरद रितु अयलक / राम सिंहासन सिंह
बरसाती जल में नहा के कि तन-मन सजाके
ई देख सरद, रितु अयलक।
दिनवाँ के छोटगर बनाके कि रतिया बढ़ाके
ई मन के पीरीतिया जगयलक।।
दिवाली में घर-घर दियरा जरयलक
छठवा बरतवा भी तुरते ले अयलक
सूरज के अरघा चढ़ाके भगतिया बढ़ाके
बहुरिया मधुर गीत गयलक।
अईलय जेठान चीभ ब तू केतारी
रतिया इंजोरिया भी लगलई पियारी
चँदवा के मुखड़ा देखा के, गगनवाँ में आके
सजनवाँ के मनवाँ लोभयलक।
धनवाँ से चमक हे चकमक खेतवा
चिरंई-चिरगुन के भी सोह रहल खांेतवा
मोह रहल मन चह-चहा के, फसल गीत गाके
किसनवन के मन ईतरलयक।
बुढ़वन के बोरसी आऊ बुतरून के गाँती
सन-सन चल रहल हे पछिया मदमाती
रोम-रोम हम्मर सिहरा के, ठिकुरावे जड़ाके
दतवा के खट-खट बजवलक।
हरियर तरकारी भी हो गेलई चालू
खेतवा के जोत के रोपा रहलई आलू
छनियन कर कदुआ झाँके परोर लदबदाके
सले-सले सीम गदरयलक।
नयका चवरवा के करब नेमानी
रची-रची पिठवा बनयब तू धानी
तिसिया आऊ मीठवा मिला के सवदवा बढ़ाके
कि मुँहवा में पानी हे अयलक
बरसाती जल में नहा के कि तन-मन सजाके
ई देख सरद-रितु अयलक।।