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प्यार भरल हौ मन में / राम सिंहासन सिंह
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कइसे का बतलइयो कितनन प्यार भरल हौ मन में।।
देखली जहँ-तहँ भरल अटारी
सजल-धजल हल सब फुलवारी
फूल खिलल हल क्यारी-क्यारी
मिलल न हमरा कुच्छो, यही भार भरल हौ मन में।।
छूटल सुख-दुख भी छन भर में
धीरज छूटल बीच डगर में
बैठल ही अब सूना घर में
जीत न पइली कहीं समर में हार भरल हौ मन में।।
लेकिन हम तकते ही तोहरा
बाँधऽ तू ही सिर पर सेहरा
हमरे तनिक बनाबऽ मोहरा
बनतो तोहरे काज कि अपार भरल हौ मन में।।
अब भी मन में आस भरल हे
बाट जोहते पाँव तरल हे
आबऽ तू ही काम सरल हे
आबऽ देखऽ अँखियन के जलधार भरल हौ मन में।।
जे भी चहबऽ ओही होतो
कोनो मनुआ इहाँ न रोतो
तोहर पूँजी कभी न खोतो
सुख-दुख के सँग तोहरे ई संसार भरल हौ मन में।।
कइसे का बतलइयो कितनन प्यार भरल हौ मन में।।