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तोहरे गितबा गैबो / राम सिंहासन सिंह

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आबऽ पास हृदय में बैइठऽ
मन के बात सुनैबो
इधर-उधर के बात न करबो
तोहरे गितबा गैबो।
बहुत दिनन के फेरा देके
अइली हे ई ठउआँ
का जानी हे कब से छूटल
हमार अप्पन गउआँ।
का कहियो रहिया में देखली
कितनन नया तमासा
लेकिन पुरन भेल न अब तक
मनके कौनो आसा।
चलते-चलते थक गेली अब
रात घिरल अँधियारी
का जानी कब सूरज निकलत
कब अयतइ उजियारी।
तोहरे पर अब आसा हमर
तू ही पार लगाबऽ
मनुआँ में हे एक भरोसा
कहियो तो तू अयबऽ।
साँस-साँस मे गीत भरल जे
तोहरे से ही पयली
मनके जब तू तार छेड़लऽ
तभिये तू कुछ गयली।
तब फिर आबऽ मन में बइठऽ
मन के बात सुनैबो
इधर-उधर के बात न करबो
तोहरे गितबा गैबो।