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दिन निकलने लगा रात ढलने लगी / रंजना वर्मा

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दिन निकलने लगा रात ढलने लगी
जिंदगी रात दिन में गुजरने लगी

जिंदगी यूँ मिली जैसे पन्ना कोई
नित नये रंग मैं रोज़ भरने लगी

ये बहारें भी चली जायेंगी एक दिन
आ हवा मेरे कानों में कहने लगी

है फिसलने लगी जिंदगी हाथ से
रेत सी है हवाओं में उड़ने लगी

ख्वाब में वो मेरे आ के मिलने लगे
फिर खुशी नैन में आ मचलने लगी

गर्म लू के थपेड़े चले इस तरह
छाँव बरगद तले भी सुलगने लगी

हिम हुई भावना के किनारे कहीं
आस की एक चिनगी चमकने लगी

छू लिया हाथ जब प्यार से आपने
अश्रु की धार आंखों से बहने लगी

वस्ल की सब उमीदें दफ़न हो गयीं
आग फिर हिज्र की है दहकने लगी