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छोड़ तारीकियाँ रौशनी की तरफ़ / रंजना वर्मा

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छोड़ तारीकियाँ रौशनी की तरफ़
आइये हम चलें जिंदगी की तरफ़

गुनगुनाने लगीं फिर से खामोशियाँ
फिर चलें आइये रागिनी की तरफ़

रब कहाँ है कहीं है या है ही नहीं
तर्क छोड़ें चलें बन्दगी की तरफ़

अब चिताओं के शोले बने राख हैं
रूप भटके नहीं उस नदी की तरफ़

दिल अभी उस का भोला है मासूम है
लौट जायेगा फिर से खुशी की तरफ़

इस तरह ख्वाहिशों की न डोली सजे
है सिमटती शमा रौशनी की तरफ़

कैसी भी हो जमीं है अंधेरों तले
साये घिरने लगे आदमी की तरफ़