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फुरकत के दर्द की नही कोई दवा मिली / रंजना वर्मा

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फुरक़त के दर्द की नहीं कोई दवा मिली
कजरे की धार बह मेरे अश्क़ों से जा मिली

थे ख्वाब जो सजाये फ़क़त ख़्वाब रह गये
उल्फत की यार हमको ये कैसी सज़ा मिली

हम बेवफ़ा नही है इसे मान लीजिये
दीगर है बात ये कि न हमको वफ़ा मिली

सुन कर पुकार साँवरा आया नहीं कभी
लेकिन हमें सभी से मुसलसल दुआ मिली

था चाँद बदलियों में औ परदे हज़ार थे
देखा तो हरिक बार नयी ही अदा मिली

खुशबू गुलों में है ज्यूँ मिले इस तरह से दिल
उम्मीदे वस्ल तो नहीं खुद से जुदा मिली

भटका किये भँवर में न था साथ नाखुदा
पायी न जीस्त हमने न हमको क़ज़ा मिली