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आजकल ये रुझान ज़्यादा है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
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आजकल ये रुझान ज़्यादा है।
ज्ञान थोड़ा बयान ज़्यादा है।
है मिलावट, फ़रेब, लूट यहाँ,
धर्म कम है दुकान ज़्यादा है।
दूध पानी से मिल गया जब से,
झाग थोड़ा उफान ज़्यादा है।
पाँव भर ही ज़मीं मिली मुझको,
पर मेरा आसमान ज़्यादा है।
ये नई राजनीति है ‘सज्जन’,
काम थोड़ा बखान ज़्यादा है।