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पहाडै खैरि / अश्विनी गौड 'लक्की'

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हमारा यूं पहाडूंकि खैरि,
कैनबि क्या जाणी
र्वोदा डांडयूं का आंसू,
कैन पछांणी।
हैंसदु ह्यूं चळकुदु द्येखि,
यूं डांडिकाठयूं टुक्क मा,
दुखका ताप गौळि जांदु,
कैनबि क्या जाणी ।
घाम खतेंदु-छिरदु द्येखि,
यूं डांडिकाठयूं धार प्योट,
पूष-मो, मैनों जड्डू,
तौंन निवाता मा क्या जाणी ।
पठ्ठाळि धुर्पळै चोंदि,
बर्खा बूँद अर बत्वाणि,
उनिन्दि कन कटेंदि राति,
तौंन क्या जाणी ।
गाजी घास खांदि देखि,
गुठ्यार अर खर्क मा,
घास ल्योण, बौंण जाण,
कैन बि क्या जाणी ।
बगदि गाड़ ओंदि देखी,
ऐंच हिवाळि डांडि बै,
सूख्या, निरपण्या पंध्यारे तीस,
तौंन क्या जाणी ।
गाड-गदर्यूं पाणि द्येखि,
ख्यळयूं मा रंगमत बण्यूं
बसग्याळ रोला-बोला बगदा,
तौंन क्या जाणी ।
अडगदि दनकदि सडक्यूं,
चलाचलि मा ऐंन सि,
उकाळि-उंद्यारा का संगडा बट्टा,
हिटणे तौंन क्या जाणी ।
हैऽरि सार्यूं बीच हैंसदि,
ग्यूं-सटयूं बालुडि,
अचणचक्क ढांढु पडि जांदु
तौंन क्या जाणी ।
हमारा यूं पहाडूंकि खैरि,
कैनबि क्या जाणी
र्वोदा डांडयूं का आंसू,
कैन पछांणी।