भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मन दिवा / बलबीर राणा 'अडिग'

Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:56, 7 अप्रैल 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बलबीर राणा 'अडिग' }} {{KKCatGadhwaliRachna}} <poem> मन...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मन दिवा तु मठु-माठु जगणु रे
सैरी दिन-रात हर घडी हर बगत
झिकुडि मां माया कु बाटू उज्यालु कैर रे।

माया बिरडॉणी ज़िन्दगी का होर-पोर
भटकणी चौक तिवारी गों ख्वाला का धोर
ज्यु जिवा बण बूट जग्वाल बैठय्यां
राँको बणी ये झिकुडि उदंकार कैर रे
मन दिवा तु मठु-माठु जगणु रे।

दुन्या सौंण चौमासी रात बणी ऐ जांदा
माया कि आग जगण नि देन्दा
जून ब्बी लुकीं जान्दी मन्खियोंक जुलम देखी
सुबेरक कोलूँ घाम बणी ऐ जा रे
मन दिवा तु मठु-माठु जगणु रे।

भोल क्या होन्दु कैन नि जाणी
आजक क्या ह्वे सबुन जाणी पच्छयाणी
द्वी दिन का दिनोंण छै यु जीवन
आशा तु जीवन की जगे जा रे
मन दिवा तु मठु-माठु जगणु रे।
मन दिवा तु मठु-माठु जगणु रे
सैरी दिन-रात हर घडी हर बगत
झिकुडि मां माया कु बाटू उज्यालु कैर रे
ये अडिग की बात मान रे।