भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उरख्याळो / बीना बेंजवाल

Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:45, 8 अप्रैल 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बीना बेंजवाल }} {{KKCatGadhwaliRachna}} <poem> किसाण...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

किसाण हाथों कु उदंकार च उरख्याळो
नाज तैं मुक्ति कु द्वार च उरख्याळो।
गैणौं स्यवाळ्द रतब्याणि बिजाळ्द
ऐन सैन ब्वे कि चार च उरख्याळो।
कब्बि खम्म-खम्म खाँसद कब्बि छुप्प-छुप्प बासद
कब्बि खित्त चैंळ्वी छलार च उरख्याळो।
देसु-बिदेसु भेजद चूड़ौं कि कुट्यरि
पहाड़ो सिखायूं एक संस्कार च उरख्याळो।
न इंजने भकभक न बिजल्यू फुकपट्ट
प्रगति तैं प्रकृति कु रैबार च उरख्याळो।
छूटणू च सौंजड़्या गंज्याळि कु दगड़ो
बिकास का अगनै लाचार च उरख्याळो।