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ओखल / बीना बेंजवाल

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कर्मठ हाथों का उदंकार है ओखल
अनाज के लिए मुक्ति का द्वार है ओखल।
तारों को सुलाए भोर सुहानी जगाए
माँ-सा लुटाता दुलार है ओखल।
खम्मखम्म खाँसे कभी राग छुप्पछुप्प सुनाए
कभी चावलों की खिलखिलाती बौछार है ओखल।
देश-विदेश भेजे च्यूड़ों की सौगात
पहाड़ पला एक संस्कार है ओखल।
इंजन की भकभक न बिजली की खपत
प्रगति को प्रकृति का रैबार है ओखल।
छूट रहा है हमजोली मूसल का साथ
विकास के आगे लाचार है ओखल।