भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ओखल / बीना बेंजवाल
Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:46, 8 अप्रैल 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बीना बेंजवाल }} {{KKCatGadhwaliRachna}} <poem> कर्मठ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
कर्मठ हाथों का उदंकार है ओखल
अनाज के लिए मुक्ति का द्वार है ओखल।
तारों को सुलाए भोर सुहानी जगाए
माँ-सा लुटाता दुलार है ओखल।
खम्मखम्म खाँसे कभी राग छुप्पछुप्प सुनाए
कभी चावलों की खिलखिलाती बौछार है ओखल।
देश-विदेश भेजे च्यूड़ों की सौगात
पहाड़ पला एक संस्कार है ओखल।
इंजन की भकभक न बिजली की खपत
प्रगति को प्रकृति का रैबार है ओखल।
छूट रहा है हमजोली मूसल का साथ
विकास के आगे लाचार है ओखल।