भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बदळतै बायरै सागै भाजती जूण / मोनिका गौड़
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:02, 8 अप्रैल 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मोनिका गौड़ |अनुवादक= |संग्रह=अं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
बेचण-बिकण री मच रैयी
मार-काट
साव अबोट अर नूंवो-नकोर बताय
दबादब लगावै
आप-आपरै सामान री बोली
लारै नीं रैय जावां विकास में
चायै कीं भी करणो पड़ै
बायरै री डांग
लागी रैवै काळजै
हथेळी में सरस्यूं उगावणै री ताताई में
विग्यापन बण्योड़ा
लोग-लुगाई
मुळकै—रबडिय़ा मुळक
नैण करै—टमरका अणथक
अणथाग
जीभ तो जाणै सैक्रीन में
पड़ी रैयगी हुवै जुगां-जुग...
जिस्म
बण जावै जिनस मंडी री
मधरी मुळक बेचो
कै बेचो नैण-मटक्का
बोली लगावो सैण री
कोई पण हुवै काया
कै किणी री माया
पण कलदार री ढिगल्यां में
किचरीजता रैवै
भाव-संवेदना अर अैसास
अर ठोकरां रुळतो जमीर
बण्यो रैवै सतोळियै रो भाटो।