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मुगती अजै अणूती अळघी / मोनिका गौड़

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मुगत हूं म्हैं
मिल रैयी है आजादी
मनचायो करण री
भाखफाटै निसरूं
अधरातै बावड़ूं
नीं उठै आंगळ्यां
नीं आखड़ूं सवालां रै भाटा सूं
पैरूं मरजी रा गाभा
लाली लिपिस्टिक लगा’र
उडावूं हांसी रा भतूळिया
फर्राटै चलावूं कार
काळो चस्मो पैर्यां
घाणी रै बाळदियै री
गत बिसरा’र मनाऊं
स्त्री आजादी रो जसन
मानूं अैसान
मरदां रो
कै थे दीवी म्हनैं स्वतंत्रता
कळदारां पेटै
बिसराय दियो
म्हैं म्हारौ हूवणो
मुगती रो झुणझुणियो बजावती
भुंइजती फिरूं
कूड़-फरेब री
रास सूं बंध्योड़ी
लुळ-लुळ करूं सिलाम
थारै ई सबदां में
कै थे बख्सी म्हनैं
देह री आजादी
पण
चेतना अजै पड़ी अडाणै
मुगती अजै अणूती अळघी...।