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म्हैं पीपळ हूं / मोनिका गौड़

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अेक अरदास है थां सूं
समझण री कोसिस कर्या
आ बात साची है
कै जड़ां घणी ऊंडी है म्हारी
थारी आस्थावां सूं ई ज्यादा
घेर-घुमेर, छायादार, पावन-पवित हूं
थांरी गीता, कुरान, रामायण, बाइबल जितरो
पण अबै म्हैं थाकग्यो
थांरी मन्नतां री मोळ्यां सूं
कामना रै जळ सूं
प्रार्थनावां री परकमां सूं
आस रै चेतन दिवलै रै उजास सूं
अधूरै सुपना री माळावां सूं
टूटोड़ै विस्वास री
भांगीज्योड़ी प्रतिमावां नैं सांभ्यां
समाजसेवी परिंडा री लटकण रै भार सूं
गट्टै पर हुवती थूक-जुगाळी सूं
गांवठी नेह, भोळपणै री बानगी अर
आपरै पावनता रै लबादै सूं
म्हैं रैवणो चावूं हूं आजाद, मुगत
दरखत बण’र
जिण पर चहकै पंछी
छिंयां में सुस्तावै पंथी
म्हारी खुली बांवां उचक’र
परसणो चावै आभो
म्हैं बाथां में भरणो चावूं
पूनम रो चांद
म्हैं थाकग्यो हूं जुगां सूं
महानता रो बोझो उखण्यां
आजाद कर दो म्हनैं
थारी कामनावां
उम्मीदां, सुपना, आस्थावां अर निष्ठावां सूं
म्हैं पीपळ हूं, स्त्री नीं होवणो चावूं...।