मेरा गौं कु थौड़ू / शान्ति प्रकाश 'जिज्ञासु'
जनु आज कु मंच हूंदू
तन्नी छौ मेरा गौं कु थौड़ु
दाना सयणा छोट्टा बड़ा
दुखमा - सुखमा
पुगड़ों की थकान हो या
उचाट मन हो
गौं शहर की खबरसार हो
या पंच-परवाणू की बात हो
थौड़ा मा लगदी छै कछड़ी
स्यमली वक्त मेरा गां की
कबारी त ब्वारि भी
मोळ घास कु फंचु बिसैकी
थौ खांदी अलेसे जान्दी छै दिवाल पर
हैंस जान्दी छै खितग्ळा लगैकी
सौंज्यड़्यों की बत्तू पर
द्वी छ्वीं लगै की मन हळ्कु कर देन्दी छै
सासूं का औगारूं पर
कुटणी पिसणी पुंगड़्यूं की धाण पर
घास पांणी गोर बछरूं पर
दाना सयणा बैठ जान्दा छा
निगाह धार लगैकी
कु होलू बटोई कैका मैमान होला
देशु वळा होला कि गां का होला
देखदा छा चश्मों थै उन्द उब्ब करी
तब तक चलदी छै कछड़ी
जब तक धै न लग जावु खाणे की
अब न व कछड़ी रै
न वु लोग रैनी
जब बिटी लोग देशु ऐ गेनी
गौं का गौं खाली ह्वैगेनी
थौड़ौ की कथा थौड़ौं मां रैगेनी
अर एक दिन
विकास का खातिर गौं मा
अचणचक बुलडोजर ऐेगी
गौं का बीचों बीच सड़क त बणगी
पर वीं सड़कऽ तौळ
मेरा गौं कु थौड़ू
कुजणी कख हरचगी ।