वाचाल / सुमित्रानंदन पंत
' मोर को
मार्जार-रव क्यों कहते हैं मां '
' वह बिल्ली की तरह बोलता है,
इसलिए ! '
' कुत्ते की तरह बोलता
तो बात भी थी !
कैसे भूंकता है कुत्ता,
मुहल्ला गूंज उठता है,
भौं-भौं !'
' चुप रह !'
' क्यों मां ?...
बिल्ली बोलती है
जैसे भीख मांगती हो,
म्याउं..,म्याउं..
चापलूस कहीं का !
वह कुत्ते की तरह
पूंछ भी तो नहीं हिलाती' -
' पागल कहीं का !'
' मोर मुझे फूटी आंख नहीं भाता,
कौए अच्छे लगते हैं !'
' बेवकूफ !'
' तुम नहीं जानती, मां,
कौए कितने मिलनसार,
कितने साधारण होते हैं !...
घर-घर,
आंगन,मुंडेर पर बैठे
दिन रात रटते हैं
का, खा, गा ...
जैसे पाठशाला में पढ़ते हों !'
' तब तू कौओं की ही
पांत में बैठा कर !'
' क्यों नहीं, मां,
एक ही आंख को उलट पुलट
सबको समान दृष्टि से देखते हैं ! -
और फिर,
बहुमत भी तो उन्हीं का है , मां !'
' बातूनी !'