भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नौजवान खातून से / मजाज़ लखनवी
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:29, 8 जुलाई 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मजाज़ लखनवी |संग्रह= }} हिजाबे फतना परवर अब उठा लेती तो ...)
हिजाबे फतना परवर अब उठा लेती तो अच्छा था।
खुद अपने हुस्न को परदा बना लेती तो अच्छा था
तेरी नीची नजर खुद तेरी अस्मत की मुहाफज है।
तू इस नश्तर की तेजी आजमा लेती तो अच्छा था
यह तेरा जर्द रुख, यह खुश्क लब, यह वहम, यह वहशत।
तू अपने सर से यह बादल हटा लेती तो अच्छा था
दिले मजरुह को मजरुहतर करने से क्या हासिल?
तू आँसू पोंछ कर अब मुस्कुरा लेती तो अच्छा था
तेर माथे का टीका मर्द की कस्मत का तारा है।
अगर तू साजे बेदारी उठा लेती तो अच्छा था
तेरे माथे पे यह आँचल बहुत ही खूब है लेकिन।
तू इस आँचल से एक परचम बना लेती तो अच्छा था।