गीत कहा तो होंगे गीत / आदर्श सिंह 'निखिल'
जीवन के सब रंग सुनहरे
अक्षर अक्षर पिरो पिरोकर
भावों की तूलिका मनोहर
चित्ताकर्षक चित्र बनाये
चित्र स्वयं सब मुखर हुए जब
अंतर्मन से प्रतिध्वनि आई
इन सस्वर ध्वनियों को जग ने
गीत कहा तो होंगे गीत।
आशाओं के पुच्छल तारे
नभ से झांक रहे चमकीले
छद्म लब्धियों के सब टीले
संभवतः होंगे रेतीले
छिड़क गया सागर के तटपर
कोई जैसे मुट्ठी भरकर
उंगली से लिख जाती होंगी
बैठ दिशाएं सागर तट पर
लहरें जिनको पढ़ लिख आती
सिंधु जिन्हें स्वर देता रहता
उन नश्वर ध्वनियों को जग ने
गीत कहा तो होंगे गीत।
लगता एक गुरुत्वाकर्षण
अनुभावों के धूमकेतु पर
उभय तटों का क्रंदन सुनता
मांझी बेबस नीर सेतु पर
सरिता नेहिल सुर संवाहक
बही जन्म जन्मों की प्यासी
उल्लासों की लहरें लेकर
तट की विचलित मौन उदासी
सब सहेज ऊंचे पर्वत से
घाट घाट को सौंप रही जो
प्रलयंकर ध्वनियों को जग ने
गीत कहा तो होंगे गीत।
अन्तस की उदीप्त पिपासा
स्मृतियों की धूप छांव में
मेघदूत संदेशे लेकर
जाते अलकापुरी गांव में
उद्वेलित मानस की पीड़ा
ऋतुएं मूक सुनाएं गाएं
विरह वेदना की लपटों में
मधुरिम वात गात झुलसाएं
पिघले मन के शब्द पत्र सब
सावन या पलाश से झरते
उन निर्झर ध्वनियों को जग ने
गीत कहा तो होंगे गीत।