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उत्तरों की खोज में / प्रशांत उपाध्याय
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जिन्दगी के श्यामपट पर प्रश्न ये किसने उकेरे
उत्तरों की खोज में ही बीतते संध्या सबेरे
लग रहा डर हर कदम पर फँस न जायें जाल में
आदमी मछली बना है वक्त के इस ताल में
ताल में भी जाल डाले हँस रहे कितने मछेरे
बेटियाँ अब सभ्यता की हो गयीं कितनी परायी
आचरण के भाइयों को याद कर हिचकी न आयी
दम्भ की ससुराल में ही हो गये इनके बसेरे
भावना के कक्ष में आसन जमाये यन्त्र हैं
संवेदना की खिड़कियों से झाँकते षड़यन्त्र हैं
अनमने घर द्वार आँगन लौट आओ गीत मेरे