भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दोस्त बन कर मुकर गया कोई / मानोशी
Kavita Kosh से
Manoshi Chatterjee (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:18, 14 अप्रैल 2018 का अवतरण
दोस्त बन कर मुकर गया कोई
अपने दिल ही से डर गया कोई
आँख में है अभी भी परछाईं
दिल में ऐसे उतर गया कोई
एक आलम को छोड़ कर हैरां
ख़ामुशी से गुज़र गया कोई
हो के बर्बाद उधर से लौटा था
जाने क्यों फिर उधर गया कोई
"दोस्त" कैसे बदल गया देखो
मोजज़ा ये भी कर गया कोई