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हरि मारहिं मिरगा बान / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

हरि मारही मिरगा बान जंगल बिच सोर भए
अरे हाँ हाँ जंगल बिच सोर भए
अरे हाँ हाँ जंगल बिच सोर भए
हरि मारही मिरगा बान जंगल बिच सोर भए

भारत बान गिरे धरती पर लछमन रहे दुहराई
हे हो लछमन रहे दुहराई
इतनी बात सुनी जब सीता मन में गई घबराई
जंगल बिच सोर भए
हरि मारही मिरगा बान जंगल बिच सोर भए

प्यारे हो तुम लछमन देवर विपत पड़ो है भारी
हे हो विपत पड़ो है भारी
भाई तुम्हारे हैं संकट में त्रिभुवन के रखवारी
जंगल बिच सोर भए
हरि मारही मिरगा बान जंगल बिच सोर भए

इतना सुनकर लछमन बोले सुनहुँ जनक सुकुमारी
को है उनको मारन वाले त्रिभुवन के रखवारी
जंगल बिच सोर भए
हरि मारही मिरगा बान जंगल बिच सोर भए

कटु बचन सीता जब बोली लछमन रेख धराई
ले धनु बान हाथ में लेकर सीता को समझाई
जंगल बिच सोर भए
हरि मारही मिरगा बान जंगल बिच सोर भए