भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हिंसरि की गूँदी / बृजेन्द्र कुमार नेगी

Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:40, 24 अप्रैल 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बृजेन्द्र कुमार नेगी |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हिंसरि की गूँदी
एक दिन की ज्वनि
कांडो कु बीच
कन बैठी छै स्याणि।

लाल साड़ी पैरि
हारू दुशला मा
टुप्प बैठीं
कन छै तरसाणी।

उड़दा पंछी
रिंगदा मनिख
कैका हत्थ
नि छै आणी।

ललचांदा चखुला
फड़-फड़ उड़दा
फंखुड़ चिराणा
पर गिच्च नि छै आणी।

मनिख रिंगणा
लालु चुवाणा
खुट्टा उच्चकाणा
पर जम्मा नि छै लिम्हेणी।

हिंसरि की गूँदी
एक दिन की ज्वनि
कांडो कु बीच
कब बैठी छै स्याणि।