भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नया एक नाम दो / साहिल परमार

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:00, 30 अप्रैल 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=साहिल परमार |अनुवादक=साहिल परमार...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नया एक नाम दो
तुम
मुझे एक नाम दो।

गुमराही ने घेर लिया था
गर्दिश में था खोया
गलियों से मैं बिछड़ के, यारा
चैन से फिर ना सोया
पाँव सम्हलने लगे हैं मुझ को
तुम नया अनजाम दो.
मुझे एक नाम दो।

आम लोगों के आँसू-पीड़ा
और उन के ज़ज्बात
प्यार जमीं का भूल के मैं ने
कहाँ लगाईं आस?
लाल ख़ून की स्याही भर दूँ
फिर
वही पैगाम दो,
तुम
मुझे एक नाम दो।

कोई था बम्मन, कोई था बनिया
कोई हरिजन जात
इंक़लाब के ख़्वाब ने कैसे
एक किए थे हाथ
नई नस्ल को जोड़ दूँ ऐसे
तुम
वही ईमान दो,
तुम
मुझे एक नाम दो,
नया एक नाम दो।

मूल गुजराती से अनुवाद : स्वयं साहिल परमार