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निकली है सवारी / साहिल परमार

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तेरी मूँछें थर-थर काँपेंगी देख निकली है सवारी
आठ आसमान चूमने के वास्ते आज मैंने पाँखे फैलाईं
सात सागर में घूमने के लिए हाथों के चप्पुओं से नैया चलाई

खुली ज़मीन ऊपर, खुले आसमाँ के नीचे
कोई ऊँचा नहीं था, कोई नीचा नहीं था
खुली जमीं ऊपर, खुले आसमाँ के नीचे
निकल आया एक घर
जिस की नींव में लहू-माँस मेरा भरा
मेरे सपने टूटे, हाथ उलटे बन्धे,
चीथड़ा बन के आकाश जिस के फ़र्श पे सिमटा
मेरी आँखों के आर-पार देख आज निकली है उस की निशानी

आठ आसमान चूमने के वास्ते आज मैंने पाँखे फैलाईं
सात सागर में घूमने के लिए हाथों के चप्पुओं से नैया चलाई


अब तो क्षितिज खुला, नई दुनिया झूली
आज तू भी मानव
और मैं भी मानव
अर्थ मानव का एक ही है – मानव - मानव
आज क्षितिज खुला, नई दुनिया झूली
गुरु वहीं का वहीं, शनि वहीं का वहीं
किन्तु देखने की रीत आज बिलकुल नई
पाँव घूमते हुए, हाथ मज़बूत हुए
बन्ध कण्ठ से मयूर अब गह्कने लगे
सूखी उँगलियाँ छलकीं कि टेरों से छूटी सर्जन की सरवानी

आठ आसमान चूमने के वास्ते आज मैंने पाँखे फैलाईं
सात सागर में घूमने के लिए हाथों के चप्पुओं से नैया चलाई

मूल गुजराती से अनुवाद : स्वयं साहिल परमार