भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दिखाते हैं / साहिल परमार

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:19, 30 अप्रैल 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=साहिल परमार |अनुवादक=साहिल परमार...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रात में आँसू ही आँखों में उमड़ आते हैं
आज भी हम को वो इतना तो याद आते है

जिन्हें चाहा उन्हें मिलना अभी मुमकिन नहीं
सब इस शहर से भी दूर-दूर बसने जाते हैं

इतने टूटे हुए ख़्वाबों को ले के जीते हैं
आज हम ही हमें बिखरे से नज़र आते हैं

वो ही उम्मीद वो ही आरजू जिगर में है
जलने लगते हैं अन्धेरों में बैठ जाते हैं

वो कहेंगें कि तुम बहुत बदल गए ‘साहिल’
मिला के आँख कहेंगे ‘जो हैं’’ दिखाते हैं

मूल गुजराती से अनुवाद : स्वयं साहिल परमार