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तुम्हारी आँखें / प्रेमशंकर शुक्ल

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तुम्हारी आँखों में

विश्वास धीरज और करुणा से मिला

देह-जल है


उनके नीचे का स्याह भाग

बार-बार क्षमा केबैठने से स्याह पड़ा है।


तुम्हारी आँखें

हमारे अपने दो क्षितिज हैं

जिनमें हम अक्सर आया-जाया करते हैं


इन आँखों से ही

तुम मेरी हर हरकत को

ताड़ती हो

फिर भी-

तुम हारती हो

और जीत

मेरे छल की ही होती है।