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वो जिसने बेवफ़ाई की तो / ब्रह्मजीत गौतम

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वो जिसने बेवफ़ाई की तो क्या मैं दूँ भुला उसको
वो जिसने दिल दुखाया है तो क्या दूँ मैं दुआ उसको

मसर्रत छीन ली जिसने, सुकूँ छीना मेरे दिल का
बता तू ही दिले नादां कि मैं दूँ क्या सज़ा उसको

ज़माने में मुहब्बतदाँ तो हमने ख़ूब देखे हैं
मगर ऐसा नहीं, जो दे वफ़ा का मश्विरा उसको

मेरे हर रोम में सिहरन,ज़बाँ में भर गई लरज़िश
कि अनजाने में ही इक रोज़ जब मैने छुआ उसको

वो जज़्बाती है, नादाँ है, दग़ाबाज़ी भी करता है
मगर है दोस्त वो मेरा मैं कैसे दूँ दग़ा उसको

न गौतम हूँ, न गाँधी हूँ, पयम्बर भी नहीं हूँ मैं
मगर महसूस करता हूँ कि अब कर दूँ क्षमा उसको

लिया है ‘जीत’ हमने साथ रहकर एक-दूजे को
न अब मुझको गिला उससे न मुझसे अब गिला उसको