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पलकों के ऊपर / प्रेमशंकर शुक्ल

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कितनी नींदों के साथ

लिपटे हैं रतजगे भी

पलकों के ऊपर


वह सपना

जो रह गया था

आँखों में उतरते-उतरते

पलकों के ऊपर

निशान हैं उसके भी

उल्टे पाँव लौटने के