प्रतिरोधी सबका स्वर होगा / अंकित काव्यांश
प्रतिरोधी
सबका स्वर होगा।
सोचो कैसा मंजर होगा!
बहता नीर
नदी का हूँ मैं तटबन्धों के संग क्यों बहूँ?
सृष्टि नियामक एक तत्व हूँ मुझमें हलचल है मैं जल हूँ।
मेरी गति ही
जीवन गति है फिर भी इस गति पर पहरा है!
नदियों! ध्वस्त करो सारे तट यह मंतव्य अभी उभरा है।
आप सभी तो
समझदार हैं क्या यह उचित फैसला होगा?
अनुशासन के बिना धरा पर नदियाँ नहीं जलजला होगा।
सबकी
आँखों में डर होगा।
सोचो कैसा मंजर होगा!
मुझसे ऊँचा
कौन विश्व में मैं ऊँचाई का मानक हूँ।
मैं ही चंदा की शीतलता मैं ही सूरज का आतप हूँ।
मुझको अपने
विराट तन पर पंछी दल अनुचित लगते हैं।
आओ सूरज का अग्नि-अंश चिड़ियों के ऊपर रखते हैं।
आकाश अगर
इस जिद पर है फिर किसका क्या उड़ान भरना!
अब तो पेड़ों मुंडेरों पर कोयल का आहत स्वर सुनना।
खतरा हर
पंछी पर होगा।
सोचो कैसा मंजर होगा!