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अलविदा केदार / राहुल कुमार 'देवव्रत'
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एकाएक से एक खबर का मिलना
तुम न रहे
स्तब्ध कर देती है किसी-किसी का जाना
मैंने देखा है
कि जब एक पीढ़ी का अंतराल
करवट लेकर
मिट्टी पर मिट्टी डाल देता है
तो इन दो परतों के बीच
शिकायत के सारे शब्द और विस्मय को लग जाता है
एक गाढ़ा पूर्णविराम
कि जाना एक खौफनाक क्रिया तो है
किंतु ये भी क्या कम है
कि तुम घुटते घिसटते तो न गए
देखो तो सही!
कि तुम्हारे जाने से
विच्छिन्न पड़ी हैं रेखाएँ
ये तुम्हारा बनारस आज भी
तुम्हारी खींची रेखाचित्र में रंग भरता सामने खड़ा है
तुम्हारा सारस का झुण्ड
एक अजीब अकाल के व्यूह में
फंसा पड़ा है
अब ये उड़ भी कहाँ पा रहा