Last modified on 12 मई 2018, at 18:30

स्मृति के कोठार पर / राहुल कुमार 'देवव्रत'

Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:30, 12 मई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राहुल कुमार 'देवव्रत' |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

वो जो कहीं छुपकर
रोशनी में नहाता है ... मैं नहीं

मेरा मैं
वो नहीं जो मैं होता रहता हूँ यक्सर

गिनने को ख़ला में और क्या-क्या हैं?
ये पंक्तिबद्ध टांकी गिरहें रेजगारियाँ
जिस्मो-जां के हजारों पैबंद
पुराने होते नहीं... न होंगे

मेरा नसीब और मैं
कि जैसे सेमल के फूल सेता परिंदा
और कांटे यहाँ उलटे उगते हैं

दफ़्न हुई ख़लिश की मोटी परतें
स्मृति के कोठार पर खामोश खड़ी
आज भी जिंदा हैं

ये दुनिया के मेले ... नाक़ाफी
झुंड का कोई नाम कहाँ होता है

अनगिन धागों की फांस से जकड़ा पतंग ही तो हूँ
उड़ता जाता हूँ अनिर्दिष्ट
गिनने को होंगी दस दिशाएँ ... मेरी ज़द मेरी नहीं

हवा की रौ उसकी मनमर्जियाँ
मेरी परवशता ... मेरा प्रारब्ध

ये फांसें कण्ठहार हैं ... स्वीकार
तुमको मालूम ...?
ये जो अनंत स्वतंत्र फैला है
सब तेरा
मेरे हिस्से का आकाश मेरा नहीं