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हां मेरी तुम / राहुल कुमार 'देवव्रत'

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हाँ मेरी तुम
व्यर्थ तुमसे बात करनी थी मुसलसल
जानता हूँ

कुछ पहर ही शेष थे अब
खत्म होता चाहता है
मैं सहज ही जान जाता क्या बुरा था

वो अदब के घर नहीं थे कूप थे

कवच की मानिंद तेरी खाल था चिपका पड़ा था
देर जाना
केंचुली-सा त्याज्य हूँ मैं वह त्वचा था


भूत का प्रारब्ध भोगे जी रहा हूँ

यक़-ब-यक़ सुनना तेरी बेलौस़ बातें
बाण ही थे विष लपेटे
काठ-सा सूखा पड़ा हूँ वृक्ष तेरा दांत काटा
हाँ मेरी तुम
मैं समय के पार जाता वह हवा था