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भटक कर जंगलों में कोई' रस्ता आम तो ढूँढें / रंजना वर्मा

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भटक कर जंगलों में कोई' रस्ता आम तो ढूँढें
कसौटी कस चुके खुद को चलो परिणाम तो ढूँढें

पिपासा कामना दुर्दम रही देती विकलता पर
हैं राहें थक गयीं आओ जरा विश्राम तो ढूँढें

अगर बेकार हो कोई घिरेगा दुर्विचारों से
हृदय निर्मल रहे इस हेतु कोई काम तो ढूँढें

दिवस भर इंद्रधनुषी स्वप्न के झूलों में हम झूले
चलो अब वास्तविकता की सुनहरी शाम को ढूँढें

सभी सम्बन्ध हैं दुर्लभ सभी सपने सलोने हैं
इन्हीं में खो गया है जो हम अपना नाम तो ढूँढें

कभी सोचा न मानव ने सतत संग्राम है जीवन
जहाँ सुख शांति हो मिलती नया एक धाम तो ढूँढें

हुआ है रावणों का राज नगरों बस्तियों पर अब
दिला दे मुक्ति जो इन से फिर ऐसा राम तो ढूँढें