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जो रहा अपना पराया हो गया / रंजना वर्मा
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जो रहा अपना पराया हो गया
व्यर्थ सब जो भी कराया हो गया
उठ गई दीवार आँगन में मे'रे
शत्रु जैसा माँ का' जाया हो गया
क्या कहूँ कुछ भी कहा जाता नहीं
धूल सब माँ का सिखाया हो गया
आसरा अब ढूँढने जायें कहाँ
स्वप्न सा माता का' साया हो गया
दे रहे आवाज़ खुशियों को मगर
दर्द घर में बिन बुलाया हो गया
ब्याज भरते जिंदगी बीती मगर
कर्ज बढ़कर है सवाया हो गया
जीतने हम तो चले थे लॉटरी
जो कमाया सब गंवाया हो गया